पृथ्वीराजरासो की भाषा
इस वीडियों से पृथ्वीराज रासो के रचनाकाल में व्यवह्रत भाषा के रूप को समझ सकते है।
*** नामवर सिंह ने लिखा है – "पृथ्वीराज रासो का वर्तमान रूप व्यक्तिविशेष की कृति न होकर अनेक पीढियों का संकलन है, इसलिए उसमें भाषा के स्तर-भेद स्वभावतः आ गए है, लेकिन यह भाषा-भेद उस प्रकार का नहीं है जिसे कुछ समन्वयवाद प्रेमी विद्वान पंच-मेल या खिचडी भाषा कहते है"।
*** रासो की भाषा प्रधानता 16वीं शताब्दी में साहित्य के क्षेत्र में प्रयुक्त ब्रजभाषा है, न डिंगल अथवा प्राचीन साहित्यिक मारवाडी और न अपभ्रंश है, किन्तु शब्द-समूह में अपभ्रंश भास और डिंगल रूपों का प्रयोग रासो में बहुत हुआ है।